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मरघट का शहंशाह

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बीते दिन अभिनेता नकुल मेहता ने अजय सिंह द्वारा लिखित Epilogue को narrate किया है |  कविता कुछ इस प्रकार है > " उसकी ख़्वाहिशों की तो कोई इंतेहा ही न थी  वो ऊँचे से ऊँचे मक़ामों पर बढ़ता गया लाशों की सीढ़ियाँ चढ़ता गया  खुदा कहलाने का शौक था जिसे  मरघट का मसीहा बन के रह गया  तुम पत्थर की कब्रें बनाना बंद करो  वो मंच समझकर चढ़ जायेगा  फिर शुरू कर देगा भाषण, ये सोचकर  कोई न कोई मुर्दा तो ज़रूर सुनने आएगा  जिसने दिन रात बस ज़हर घोला हो हवा में क्यूँ उम्मीद करते हो, तुम्हारे लिए ऑक्सीजन लायेगा  शमशानों कब्रिस्तानों में कम्पटीशन करानेवाला  क्या ख़ाक तुम्हारे लिए हॉस्पिटल बनवायेगा ऐसा न समझो कि उसे तुमसे मोहब्बत नहीं  या तुम्हारे ज़िंदा रहने में उसे कोई इंटरेस्ट नहीं  बस उससे कुछ कहो मत, सुनते रहो  फिर देख लेना मियाँ, ज़िन्दों की तो क्या ही कहो  वो बहुत जल्द मुर्दों से भी वोट डलवाएगा Watch This Video  @nakuulmehta  #inrepostme @insaver.best  —— A short epilogue for our poetry special #TooMuchDemocracy  “मरघट का शहंशाह” लेखन: @ajax.singh